पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/२१९

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विचित्र प्रबन्ध । हमारे देश की स्त्रियों के लिए क्या कह रहे थे। बीच में दूसरी बात कं उठ जान से वह बात वहीं रुक गई । मैंने कहा--मैं यही कह रहा था कि हमारे देश की स्त्रियाँ पुरुषों की अपेक्षा बहुत बड़ी हैं. श्रेष्ठ हैं। क्षिति न कहा-इसका प्रमाग क्या है ? मैंने कहा-प्रमाण ता सामन ही है। इसका प्रमाण घर-घर में विद्यमान है। इसका प्रमाण प्रत्यक हृदय ही है। पश्चिम में भ्रमण करने के समय मार्ग में बहुत सी नदियाँ मिलती हैं। उनमें सूखी बालू का भाग ही अधिक है। उसी बालू की राशि के एक प्रान्त से स्फदिक कं समान स्वच्छ जलवाली नदी धीरे धीरे प्रवाहित हो रही । उस दृश्य के दखने से मुझे अपने समाज की याद आती है। हम लोग निकम्म निश्चल बाल की राशि के समान पड़े हैं। प्रत्यक श्वास में मृत्यु की आर आगे बढ़ते जाते हैं। यदि अपना कात्ति - स्तम्भ बनवाते हैं तो वह भी थोड़े दिनों के बाद ही नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है। हम लोगों के बाई और हमारी स्त्रियां विनम्र दासी के समान बहुत ही संकुचित हो कर छोटे छोटे कामों में लगी हुई हैं और अपनी स्वच्छ सुन्दरता प्रकाशित कर रही हैं। उनको एक क्षण के लिए भी विश्राम नहीं। उनकी गति, प्रीति तथा समस्त जीवन अपने निश्चित उद्देश्य की ओर सदा ही अग्रसर हो रहा है। हम लोगों का उद्देश्य नहीं, एकता नहीं; वहुत दिनों से कुचले जाने के कारण अब हम लोगों में मिलने की शक्ति भी नहीं है। जिस और जल का प्रवाह है, जिम और हमारी स्त्रियाँ हैं, उसी ओर सारी शोभा, छाया और सफलता है और जिस ओर हम लोग हैं उसी