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पञ्चभूत।

अब दीप्ति से नहीं रहा गया। उसने पुस्तक हटा दी और अपनी उदासीनता का भाव भी छोड़ दिया। इसके बाद वह बोली-क्यों? दुर्गेशनन्दिनी में ता विमला का चरित्र कार्यों से ही प्रकाशित हुआ है। बतलाइए ऐसी निपुणता, तत्परता और अध्यवसाय उस उपन्यास में और कितने नायकोँ ने दिखाया है? आनन्दमठ उपन्यास भी तो कार्य-प्रधान ही है। उसमें सत्यानन्द, भवानन्द, जीवानन्द प्रादि सन्तान-सम्प्रदायवालों ने काम किया है सही पर वह कवि का केवल वर्णन है। उस उपन्यास में यदि किसी के चरित्र में यथार्थ कार्यकारिता प्रकाशित हुई है तो वह शान्ति का ही चरित्र है। देवी चौधरानी में माल़िक का पद किसको मिला है? स्त्री ही को। परन्तु क्या वह माल़िक का पद अन्तःपुर का है? नहीं।

वायु ने कहा―क्षिति, तर्कशास्त्र की सरल रेखा के अनुसार ही सब पदार्थों का उत्तम प्रकार से श्रेणी-विभाग नहीं किया जा सकता। शतरञ्ज की पटरी पर लाल पीले काले आदि रंगों से घर बनाये जा सकते हैं, क्योंकि वह निर्जीव पदार्थ है। पर मनुष्य-चरित्र उतना सहज नहीं है। तुम युक्तियों के द्वारा भाव- प्रधान, कर्म-प्रधान आदि अनेक प्रकार की जितनी चाहो अलङ्घ- नीय सीमा निश्चित कर सकती हो, परन्तु इस विशाल संसार के विचित्र कर्म-क्षेत्र में सभी बातें उलटी पलटी हो जाया करती हैं। समाज-रूपी लोहे के कराह के नीचे यदि जीवन की आग न जलती तो सम्भव था कि मनुष्यों मेँ भी किसी प्रकार श्रेणी- विभाग किया जा सकता और वह श्रेणी-विभाग अटल भी रहता। पर जिस समय जीवन की ज्वाला प्रदीप्त हो उठती है उस समय