पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/१८०

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६९
योरप की यात्रा।

एक बजने के समय और एक घंटा बजा। यह दूसरी बार भोजन की सूचना देता है। भोजन करके सब लोग डेक पर चले आये। दो बार भोजन करने के कारण तथा धूप के कारण बड़ा आलस्य मालूम होने लगा। समुद्र शान्त है, आकाश नीला और निर्मल है। धीरे धीरे हवा चल रही है। कुरसी पर बैठ कर उपन्यास पढ़ते पढ़ते बहुत सी नीली आँखें निद्रा के अधीन हो गई। केवल एक दो आदमी शतरज, वैकगैमन या ड्राफ्ट खेल रहे हैं। कितने ही युवक तो इतने कर्मनिष्ट और उत्साही हैं कि वे दिन भर कायट्स खेलने ही में लग रहे। कोई काई स्त्रो काग़ज़-क़लम लिय एकाग्र हो कर पत्र लिख रही है और कोई कारीगर और दिल्लगीबाज़ स्त्री सोये हुए अपने साथियों का चित्र खींचने की चेष्टा कर रही है।

धीर धीर सूर्य अस्ताचल की ओर जाने लगे। गरमी भी कम होने लगी। उस समय धूप से घबराये हुए मनुष्य नीचे गये और वहाँ जाकर उन लोगों ने रोटी, माक्खन, मिठाई और चाय आदि खा-पी कर शरीर का आलस्य दूर किया। तदनन्तर फिर वे डेक पर उपस्थित हुए। फिर युगल-जाड़ियाँ बड़े उत्साह से घूमने लगीं। बातचीत में बीच बीच उनकी मृदु मधुर हँसी का शब्द भी सुन पड़ने लगा। दो-चार पाठिकाएँ उपन्यास के अन्तिम परिच्छेद से किसी तरह अपने का अलग नहीं कर सकतीं-वे सन्ध्या के धुँधले प्रकाश में एकाग्रता के साथ नज़र गड़ाये नायक-नायिका का अन्तिम परिणाम जानने के लिए उत्सुक हो रही हैं।

दाहनी और का आकाश सुवर्ण के समान प्रकाशित हो रहा