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विचित्र प्रबन्ध।

इसके पीछे वहाँ दृसरा दृश्य उपस्थित हुआ। किसी स्त्री की कुरसी नहीं मिली; वह उदास मुँह लिये दुखी होकर इधर उधर देखने लगी। किसी स्त्री ने अपनी कुरसी तो ढूँढ़ ली पर वह अपनी कुरसी जहाँ रखना चाहती थी वहाँ नहीं रख सकी। उस समय पुरुष-दल में से कोई उठा और रमणी-सहायता के व्रत में तथा कुरसी उठाने के कार्य में लग गया। कार्य सिद्ध होने पर उसको पारितोषिक के रूप में मधुर धन्यवाद मिला।

तदनन्तर सब अपनी अपनी कुरसियों पर बैठ गये। धूम-पान करनेवाले चुरुट पीने के कमरे में अथवा डेक के पीछे की ओर जाकर बैठे और बड़े प्रेम से चुस्ट पीने लगे। स्त्रियों में कोई तो उपन्यास पढ़ती है और कोई कोई सिलाई का काम कर रही हैँ। बीच बीच में कोई युवक थोंड़ी देर के लिए आकर उनके पास बैठ जाता है और भ्रमर के समान कान में कुछ गुन गुन करके चलता बनता है।

भोजन के कुछ पच जाने पर एक दल में "कायट्स" खेल शुरू होगया। दो बल्लियाँ दस दस हाथ के फासले पर खड़ी की गईं। एक एक स्त्री और एक एक पुरुष आमने सामने खड़े हुए। वे पारी पारी से अपने अपने स्थान पर खड़े रहकर 'उबके' के समान रस्सी के फंदे दुसरी और की बल्ली में डालने की चेष्टा करने लगे। जो पक्ष पहले इक्कीम बार सफलता प्राप्त कर लेगा उसी की जीत समझी जायगी। खेलनेवाली स्त्रियाँ कभी जीतने की खुशी से और कभी निराश होकर चिल्ला उठती हैं। कोई खड़ा खड़ा देख रहा है, कोई गिनती कर रहा है, कोई खेल में शामिल हो रहा है और कोई कोई पढ़ने में और बातचीत करने में लगा हुआ है।