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योरप की यात्रा।

क़ब्रिस्तान में एक सीढ़ी है जिससे नीचे के घर में जाना होता है। हम लोग उसी सीढ़ी से नीचे गये। वहाँ कई हज़ार मृत मनुष्यों को खोपड़ियाँ बड़ी व्यवस्था से ढेर की ढेर रक्खी हैँ। तैमृरलङ्ग जब विश्व-विजय के लिए निकला था उस समय उसने भी ऐसा ही उत्कट और भीषण दृश्य देखा था। इन मुण्डमालाओं के देखन से हमें उस कङ्काल की आकृति का ज्ञान हुआ जो रात-दिन हम लोगों के साथ साथ रहता है। इस समस्त संसार पर जीवन और सुन्दरता एक चित्रित पर्दा डाले हुए है। यदि किसी दिन कोई क्रोधी देवता अकस्मान सुन्दर चमड़े का पर्दा सारे संसार पर से हटा ले तो उस समय कैसा दृश्य होगा! उस समय देख पड़ेगा कि लाल ओठों के नीचे छिपी हुई सूखे श्वेत दाँतों की पंक्ति विकट हँसी हँस रही है। अच्छा जाने दो, यह पुरानी बात है; पुराना विषय है! इन नर-मुण्डों के आधार पर नीति-वेत्ता पण्डितों ने बड़े भयानक मत प्रकट किये हैं। परन्तु मैं इतनी देर से देख रहा हूँ, मुझे कुछ भी भय नहीं मालूम होता। इन नर-मुण्डों को देखने से मन में केवल यही बात आई कि जिस प्रकार सीता-कुण्ड से निकले हुए जल-बिन्दुओं से गरम भाप निकल जाती है, उसी प्रकार कितने ही युगों की चिन्ता, दुराशा, अनिद्रा, सिर की पीड़ा आदि कितने ही रोग इन मस्तकों से–इन हड्डियों के गोलकों से–निकल गये है। साथ ही साथ यह बात भी स्मरण आई कि कितने ही डाक्टर सिर के बाल न उड़ने के लिए औषधों का आविष्कार करते हैं और वे अपने आविष्कृत औषध का गुण-गान करते करते मर जाते हैं परन्तु इन मस्तकों का तो उधर ध्यान नहीं है, ये तो अपने में बाल उगाने के