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योरप की यात्रा।

यह समझ कर रख लेते हैं कि यह हम लोगों में से किसी न किसी की होगी ही। अन्त को जब अपना अपना सामान अलग अलग किया जाता है उस समय जो वस्तु अधिक होती है तब मालूम होता है कि यह वस्तु दूसरे की है। परन्तु तब क्या हो सकता है। उस समय उस वस्तु को उसके मालिक के पास भेजने का काई उपाय हाथ में नहीं रहता। यह ओवरकोट हम लोग रेलगाड़ी से लाये हैं। जिसका कोट है वह बेचारा विश्वास-पूर्वक ख़ूब सो रहा था। वह गाड़ी इस समय समुद्र के तीर पर कैले नगर के समीप पहुँची होगी। जिसका यह ओवर-कोट है वह कौन है। इस विशाल बृटिश राज्य मेँ उसका क्या पता है। यह सब हम लोगों को कुछ भी नहीं मालूम। इधर हम लोग उसका ओवर- कोट और पाप का भार कन्धे पर रख कर घूम रहे हैं। प्रायश्चित्त करने की राह भी बन्द है। मालूम होता है, एक बार जहाज़ में जिसका कम्बल उठा कर मैं ले आया था उसीका यह ओवरकोट भी है। क्योंकि रेलगाड़ी में वह हम लोगों के पास ही की बैठक पर सोया था। वह बेचारा बूढ़ा शीत-पीड़ित और बाई के रोग से दुखी है। वह एंग्लो-इण्डियन पुलिम का अध्यक्ष है। पुलिस का काम करने से मनुष्य-चरित्र पर उसका सहज ही अविश्वास हो गया होगा और जब वह देखेगा कि एक ही यात्रा में एक ही प्रकार की घटना एक ही मनुष्य के द्वारा रात में दो दो बार हो गई तब उसके हृदय में मनुष्यों के प्रति कैसे भावों का उदय होगा! क्या वह कभी हमको सुशील और सञ्चरित्र समझ सकेगा? प्रातःकाल बृटिश-चैनेल पार होने के समय जब वह शीत से व्या-