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योरप की यात्रा।

मैं आज घर को पत्र लिख रहा हूँ। एक बार सिर उठा कर बाईं और देखा तो "आरोनियन" द्वीप साफ़ साफ़ देख पड़ा। पहाड़ों की गोद मेँ ठीक समुद्र के किनारे मनुष्य का बनाया हुआ एक बड़ा ही घना ममाखी का छत्ता सा मालूम होता है। यही है ज़न्थे (Zanthe) नाम का नगर। दूर से देखने पर मालूम होता है कि पर्वत अपनी भारी अंजलि मेँ श्वेत पुष्प लेकर समुद्र को पुष्पाञ्जलि देने की तैयारी कर रहा है।

डेक पर जाकर जो मैंने देखा तो मालूम हुआ कि दूर तक पर्वत-माला चली गई है और उसीके बीच से तंग समुद्री मार्ग से हम लोगों का जहाज़ चला जा रहा है। आकाश मेघों से पूर्ण होगया है। बिजली चमक रही है। आँधी आने के पूरे लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं। हमारे सब से ऊपर वाले डेक पर का चँदोवा खोल दिया गया। पर्वत पर सघन मेघ घिर आये। केवल थोड़ी दूर के एक पहाड़ पर, बादल के बीच के छेद से, सन्ध्या का रक्तवर्ण प्रकाश एक लंबी लाल रङ्ग की इशारा कर रही उँगली की तरह आकर पड़ रहा है। और सब आनेवाली आँधी की छाया से छिप गया है। पर आँधी नहीं आई। एक बार कुछ वेग से हवा चली और जोर से पानी आया। बस, इतने ही से और सब अनर्थ दूर होगये। भू-मध्य-सागर के आकाश की अवस्था निश्चित रूप से नहीं बतलाई जा सकती। मैंने सुना कि जिस मार्ग से हम लोगों का जहाज़ जा रहा है उस मार्ग से और जहाज़ नहीं आते- जाते। यह मार्ग बड़ा ही भयानक है।

रात्रिभोजन के पश्चात् यात्रियों ने कप्तान के स्वास्थ्य का प्याला