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विचित्र प्रबन्ध।

को "इण्डेकोरस" कह रहे हैं। पर विदेशियों के लिए उस स्त्री को निर्लज्ज और अप्रतिष्ठित समझना अनुचित है। क्योंकि नृत्य- शाला में इसी वेश में, या इससे भी अधिक खुले वेश में, किसी स्त्री के जाने पर किसी को कुछ भी विस्मय नहीं होता।

परन्तु विदेशी समाज-नीति के विषय में विशेष उत्साह के साथ कुछ कहना अच्छा नहीं है। हमारे देश में व्याह तथा इसी प्रकार के किसी किसी उत्सव के उपलक्ष में औरतें बिना किसी संकोच के जैसी निर्लज्जता दिखाती हैं वैसी निर्लज्जता यदि और कहीं दिखातीं तो सभी लोग उनको बुरा समझते।

३१ अगस्त। आज रविवार है। प्रातःकाल उठ कर हम ऊपर डेक पर गये और वहीं कुरसी पर बैठ कर समुद्र की हवा खाने लगे। नीचे उसी समय ख्रिष्टानों की उपासना प्रारम्भ हुई। यह तो मुझे मालूम था कि इनमें से बहुत से योंहीं शुष्क भाव से फोनोग्राफ़ बाजे के समान, अभ्यस्त मन्त्र पढ़ते और गान गाते हैं; इनके हृदय में भक्तिभाव नहीं है; पर इस दृश्य को देख कर सचमुच आश्चर्य होता था कि ये क्षुद्र चञ्चल मनुष्य अगाध और अपार समुद्र में निश्चल खड़े होकर उस अनन्त रहस्य के प्रति अपने क्षुद्र हृदय की भक्ति प्रकट कर रहे हैं।

बीच में कभी कभी अट्टहास भी सुनाई दे रहा है। अनुसन्धान से मालूम हुआ कि वह युवती, जो रात को हमारे सामने भोजन करती थी और जिसे देखकर प्रायः सभी तर्क-वितर्क करते थे, उपासना मेँ सम्मिलित नहीं हुई है। वह डेक पर ही बैठी है और अपने एक उपासक युवक के साथ प्रेमालाप कर रही हैं। वे दानोँ