पृष्ठ:विचित्र प्रबंध.pdf/१३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विचित्र प्रबन्ध।

था कि अगाध काल-समुद्र के ऊपर इस प्रकार पुस्तकों का पुल बाँधा जायगा!

लाइब्रेरी के बीच हम हज़ारों मार्ग के चौराहे पर खड़े हुए हैं। कोई मार्ग अनन्त समुद्र की ओर गया है, कोई मार्ग अनन्त उच्च शिखर पर गया है, और कोई मार्ग मनुष्य-हृदय की सबसे निचली तह की ओर गया है। चाहे जिस ओर जाइए, कोई रुकावट न होगी। मनुष्य ने अपनी रक्षा को इतनी सी जगह में बाँध रक्खा है।

शङ्ख के भीतर समुद्र का शब्द सुन पड़ता है, वैसे ही क्या इस लाइब्रेरी में तुम हृदय के उत्थान और पतन का शब्द सुन पात हो ? यहाँ जीवित और मृत मनुष्यों के हृदय पास ही पास एक ही मुहल्ले में रहते हैं। यहाँ वाद और प्रतिवाद, खण्डन और मण्डन दोनों एक साथ भाई भाई के समान रहते हैं। संशय और विश्वास, खोज और आविष्कार यहाँ मिल कर रहते हैं। यहाँ बलवान् और दुर्बल दोनों बड़े धैर्य और शान्ति के साथ अपना अपना जीवन बिताते हैं। यहाँ कोई भी किसी की उपेक्षा नहीं करता।

कितने ही नद, नदी, समुद्र, पर्वत आदि लाँघ कर मनुष्य का कण्ठ-स्वर यहाँ आकर पहुँचा है––कितनी ही शताब्दियोँ के किनारे से वह स्वर यहाँ आरहा है। आओ, यहाँ आओ, यहाँ प्रकाश के जन्मोत्सव का मङ्गल-गीत गाया जाता है।

जिन महापुरुषों ने पहले पहल अमृत-लोक का आविष्कार करके किसी दिन अपने चारों ओर मनुष्यों को बुलाकर कहा था––तुम लोग अमृत के पुत्र हो, तुम्हारा वासस्थान दिव्य धाम है,