पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/९६

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का जो वर्णन लिखा है उसमें पुल केशी के प्रभुर आदि का लंबा चौड़ा उल्लेख है।

इस शाखा का सातवाँ राजा विक्रमादित्य(प्रथम) हुआ। इसी के राजत्व में इस वंश की एक शाखा गुजरात के अनहिलपट्टन में स्थापित हुई। विक्रमादित्य का भाई, जयसिंहराज, वहाँ का पहला राजा हुआ। इस वंश को गुजरात में दो तीन शाखायें हुई। आठवीं शताब्दि में इस शाखा का गुजरात में अन्त हो गया।

७५३ ईसवी में पूर्वकालीन चालुक्यों का अधिकार राष्टकूट के राजा दंतिदुर्ग ने छीन लिया। तब से महाराष्ट्र देश में राष्ट्रकूटों की सत्ता का प्रसार हुआ।

महाराष्ट्र में राष्ट्रकूटों की सत्ता काई २०० वर्ष तक रही। इस दरमियान में चालुक्यों के वंशजों में कोई नाम लेने लायक राजा नहीं हुआ। परन्तु दसवीं शताब्दि के मध्य में चालुक्य-वंशीय तैलप राजा ने राष्ट्र वंशीय कक्कल राजा से दक्षिण- देश का सार्वभौमत्व छीन कर उत्तर-कालीन चालुक्य-वंशीय राजाओं को शाखा की स्थापना की। इस शाखा में सब मिला कर ११ राजे हुये।यथा-