पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/९२

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उधर चन्द्रकला के घर से जब बिल्हण निकाले गये, और उनके विषय में पिता की कठोर आज्ञा चन्द्रकला ने सुनी, तब उसने भी मर जाना निश्चय किया। वह अपने महल की छत पर चढ़ गई और नीचे गिर कर प्राण देने की तैयारी करने लगी। इसी समय कुछ स्त्रियाँ उसके महल में गई और चन्द्रकला को मरने के लिए उद्यत देख घबरा उठी। वे दौड़ी हुई चन्दकला की माँ के पास आई और सब हाल बयान किया। उधर वधस्थल का दृश्य जिन स्त्रियों ने देखा था वे भी चन्द्रकला की माँ के पास आई और बिल्हण की अनुरक्ति आदि का वर्णन किया। इन बातों को सुन कर चन्द्रकला की माँ, सुतारा, फूट फूट कर रोने लगी। दौड़ती हुई वह वीरसिंह के पास गई और कहा कि तुम्हारी आज्ञा ब्रह्महत्या और कन्या की आत्म-हत्या दोनों का कारण होगी। वीरसिंह ने अपने पुरोहित और मंत्रियों से सलाह को। उन्होंने कहा, ब्रह्महत्या और स्त्री-हत्या दोनों घोर पातक हैं। उनसे हमेशा आदमी को बचना चाहिए। इस पर वीरसिंह ने बिल्हण को माफ़ कर दिया और विवाह-विधिपूर्वक चन्द्रकला भी उसे दे डाली । एक सौ गाँव, हाथी,