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बिल्हण उसे पढ़ाने लगे। राजकन्या बड़ी कुशाग्र बुद्धि थी। वह थोड़े ही दिनों में पण्डिता हो गई:-

"स्तोकैदिनैः शशिकला विदुषी बभूव"।

पण्डिता हो चुकने पर उसे बिल्हण काम-शाख पढ़ाने लगे। शशिकला बिल्हण की "पूर्व-जन्मपत्नी थी। यह शास्त्र पढ़ते पढ़ते वह बिल्हण में अनुरक्त हो गई और दोनों ने छिपे छिपे गान्धर्व विवाह कर लिया।

बिल्हण काव्य की कई प्रतियाँ मिलती हैं। एक में लिखा है कि वीरसिंह ने शशिकला का हाथ बिल्हण के हाथ में देकर कहा, आप इसे पढ़ा कर विदुषी कर दीजिए। इससे मालूम हुआ कि शशिकला और बिल्हण में पर्दा न था। दोनों पास पास बैठ कर अध्ययन-अध्यापन करते थे। पर दूसरी प्रति में लिखा है कि बीच में जवनिका (पर्दा) डाल कर अध्ययन-अध्यापन होता था। इस प्रति में लिखा है कि एक दिन बिल्हण ने शशिकला को सुना कर यह श्लोक पढ़ाः-

जातं सुजन्म विफलं भुवने नलिन्या
दृष्टं यया न विमलं तुहिनांशुविम्बम् ।