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वर्णन है वह रघुवंश के नवम सर्ग के मृगया-वर्णन का अनुकरण है। विक्रमांकचरित के बारह सर्ग में विक्रम के कल्याण लौटने पर स्त्रियों की भावभङ्गियों का वर्णन रघुवंश के सप्तम सर्ग के वर्णन से बहुत कुछ मिलता है। अपने कथन की पुष्टि में हम दो एक उदाहरण प्रत्येक स्थल के देना चाहते हैं-
[१]
तत्रागतानां पृथिवीपतीना-
मासन्विचित्राणि विचेष्टितानि।
विक्रः, सर्ग ६, पद्य ७५।
वहाँ, आये हुए राजानों ने विचित्र विचित्र प्रकार की चेष्टायें की।
प्रबालशोभा इव पादपानां
शृङ्गारचेष्टा विविधा बभूवुः।
रघुवंश, सर्ग ६, पद्य १२ ।
वृक्षों के पत्तों की शोभा के समान राजाओं ने अनेक प्रकार की शृङ्गार-चेष्टायें प्रदर्शित की।
[२]
श्रीखण्डचपरिपागडुरोऽथ
पाण्ड्यः प्रकामोन्नतचारुदेहः ।
विक्र०, सर्ग ६, पद्य ११६ ।