पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/७४

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प्रकार क्षमा के पात्र भी माने जा सकते; परन्तु बिल्हण ऐसे महाकवि के लिए ऐसा व्यवहार करना हम फिर भी, अनुचित ही कहेंगे। अच्छा जाने दीजिए, बिल्हण को अपहरण का दोषी न ठहरा कर, केवल अनुकरण करने अथवा दूसरे की उक्तियों का प्रतिविम्ब ग्रहण करने ही भर के लिए हम उत्तरदाता समझते हैं।

विकमाङ्कदेवचरित के नवें सर्ग में जो चन्द्रलेखा के स्वयंवर का वर्णन है वह रघुवंश के छठे सर्ग में वर्णन किये गये इन्दुमती के स्वयंवर का अनुकरण है-थोड़ा नहीं पूरा अनुकरण है। रघुवंश में इन्दुमती के साथ उसकी प्रतीहारी सुनन्दा थी और वही राजाओं का परिचय देती थी। विक्रमांकचरित में भी बिना नाम की एक प्रतीहारी है और वह भी पाये हुए राजाओं का वर्णन चन्द्रलेखा को सुनाती है । स्वयंवर में इन्दुमती के आने पर, उसे पाने की इच्छा रखने वाले राजाओं ने अपने मन के भाव अनेक प्रकार की चेष्टाओं से सूचित किये थे; विक्रमांकदेवचरित में भी वैसी ही चेष्टानों का वर्णन है। बिल्हण के काव्य के सोलवें सर्ग में मृगया का जो