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सन्तानोत्पत्ति; चोल-नरेश के साथ अन्तिम संग्राम विक्रम की जीत; कुछ काल तक चोल की राजधानी काञ्ची में उसका रहना और तदनन्तर कल्याण-गमन।

१८-काश्मीर-वर्णन, काश्मीर के राजा अनन्त, कलश और हर्ष आदि का वर्णन; कवि के पूर्वजों का तथा स्वयं अपना चरित, देश-पर्यटन इत्यादि।

इस विषयानुक्रमणिका से स्पष्ट है कि ऋतु आदि का वर्णन करके बिल्हण ने कथा को बहुत ही अधिक पल्लवित किया है। यदि काव्य के अंगों का वर्णन इसमें न किया जाता तो सातही आठ सर्गों में विक्रम का जितना चरित इसमें वर्णित है उतना आ जाता। बिल्हण ने अपने काव्य को यद्यपि चरित नाम दिया है तथापि, इस समय की रुचि के अनुसार, उन्होंने तवारीख़ नहीं लिखी। बिल्हण को महाकाव्य लिखना था और उसके लिए किसी नायक का आधार आवश्यक था। अतएव जिसके वे आश्रित थे उसको ही चरित का नायक करके उन्होंने यह काव्य निर्माण किया । बिल्हण को ऋतु-वर्णन से बड़ी प्रीति जान पड़ती है; एक भी ऋतु उन्होंने नहीं छोड़ी। चौदहवे सर्ग में कहाँ तो