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उक्तियों का; कहीं उसके हावभावों का; और कहीं तदनुकूल अपने मनोविकारों का। मरणोन्मुख मनुष्य के मुख से ऐसी सरस और सालङ्कार कविता का निकलना बड़े आश्चर्य की बात है।
बिल्हण के विक्रमादेवचरित में १८ सर्ग हैं। यह एक जगह में हम ऊपर भी कह आये हैं। यहाँ पर हम प्रत्येक सर्ग में वर्णन किये गये विषयों की अनुक्रमणिका देते हैं-
१-मङ्गलाचरण: कवि और काव्यकी प्रशंसा; आहवमल्ल और उसके पूर्वजों का वर्णन|
२-चालुक्यों की राजधानी कल्याण का वर्णन; सन्तान के लिए आहवमल्ल की तपस्या; शंकर का वर-प्रदान; सोमदेव का जन्म।
३-विक्रमाङ्कदेव का जन्म; उसके बालचरित; जयसिंह का जन्म; सोमदेव को युवराज-पद की प्राप्ति।
४-विक्रमाङ्क-कृत दिग्विजय ; आहवमल्ल की मृत्यु, सोमदेव का राजा होना; विक्रमाङ्क का
कल्याण को लौटना सोमदेव का अन्याय और अस-