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अति मनोरम मन्दिर भी उसने निर्म्माण कराया; और उसके सामने ही एक उत्तम तड़ाग खुदवाया। उसी के पास उसने एक बहुत बड़ा नगर भी बसाया[१]

विक्रम को एक बार फिर युद्ध-यात्रा करनी पड़ी। चोल-नरेश ने फिर सिर उठाया। विक्रम ने फिर काञ्ची पर चढ़ाई की और युद्ध में फिर चोलमहीप का पराजय हुआ। विक्रम ने काञ्ची को अपने अधीन कर लिया और वहाँ कुछ दिन रहकर वह अपनी राजधानी कल्याण को लौट आया[२]

बिल्हण की कविता।

बिल्हण महाविद्वान् भी थे और महारसिक भी। सुनते हैं जिस समय वे इस देश में पर्य्यटन कर रहे थे, उस समय किसी राजा के दरबार में


  1. इस नगर का नाम शिलालेखों में विक्रमपुर लिया है। विक्रम का खुदाया हुआ तड़ाग और दूसरी टूटी फूटी इमारतें और मन्दिर इस नगर के पूर्वकालीन वैभव की अभी तक साक्ष्य दे रहे हैं।
  2. यहाँ पर बिल्हण का वर्णन किया हुआ विक्रमाङ्क का चरित समाप्त हुआ।