पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/६१

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(५५)


भूत करना चाहता है। इस संवाद को सुनकर विक्रम को बड़ा असमंजस हुआ; परन्तु जयसिंह की प्रतिकूलता का पूरा प्रमाण पाये बिना उसके प्रतीकार के लिए उद्यत होना उसने अनुचित समझा। अतएव उसने सत्यता का निर्णय करने के लिए कई दूत भेजे, जिन्होंने आकर उसके सुने हुए संवाद को सत्य बतलाया। इस पर भी विक्रम ने अपने भाई के प्रतिकूल शस्त्र नहीं उठाना चाहा; उसने जयसिंह को कहला भेजा कि प्रतिकूलता करने से उसे कोई लाभ न होगा। परन्तु उसके कहने सुनने का जयसिंह पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा।

इसी अवसर में शरद ऋतु का आगमन हुआ। बिल्हण ने इस ऋतु की शोभा का भी लम्बा चौड़ा वर्णन किया है।

यद्यपि इस ऋतु में अनेक बातें सुखकर होती हैं, परन्तु जयसिंह की ओर से खटका होने के कारण विक्रम को उसका आगमन सुखदायक नहीं हुआ। विक्रम ने बहुत चाहा कि जयसिंह उससे मेल कर ले; परन्तु उसने एक न सुनी। जयसिंह ने अनेक माण्डलिक राजाओं के साथ शीघ्र ही सेना समेत