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करते थे। चन्द्रलेखा से बसन्त का वर्णन करके विक्रम उसे प्रसन्न करता था; और झूले पर बिठाकर उसे स्वयं झुलाता था। दस पाँच दिन बीत जाने पर एक बार करहाट का सारा रनिवास पुष्पवाटिका को गया और वहाँ राजा के साथ अनेक प्रकार की विनोदात्मक बातें करते हुए उन्होंने फूल बीने। उसके अनन्तर सबने जल-बिहार किया और सायङ्काल चन्दमा की आह्लादकारिणी चाँदनी का सुख लेकर सबने श्रृंगार भी किया। यह सब हो जाने पर राजा ने स्त्रियों समेत मधुपान किया। स्त्रियाँ शीघ्र ही मधु के वश हो गई और उनकी अङ्ग-भङ्गी और बातों से राजा का बहुत कुछ मनोरञ्जन हुआ।

ग्रीष्म के आरम्भ में चन्द्रलेखा को लेकर विक्रम कल्याण लौट आया। उसका पुर में प्रवेश करना सुन स्त्रियाँ उसे देखने को दौड़ीं और नाना प्रकार की चेष्टायों से उस पर उन्होंने अपना प्रेम प्रकट किया। अपने महलों में पहुँच कर विक्रम ने एक बहुत बड़ा दरबार किया और दरबार के अनन्तर वह अन्तःपुर में सुख से रहने लगा। चन्दन आदिक शीतल पदार्थो से अपने शरीर को लिप्त करके,