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स्मरण दिलाया। कोंकन का राजा जयकेशी[१]उससे आकर मिला और अनेक प्रकार के उपायों से उसने उसकी सम्भावना की। [२]आलुपदेश के राजा ने भी विक्रम की अधिनता स्वीकार की। केरल के राजा की स्त्रियाँ विक्रम के पहले कृत्यों का स्मरण करके भयभीत हो उठी।
चोलदेश के राजा ने जब यह जाना कि वह विक्रम का सामना नहीं कर सकता तब उसने अपना दूत भेजकर विक्रम से स्नेह सम्पादन करना चाहा। इस बात को विक्रम ने स्वीकार किया। चोल-नरेश ने इस परस्पर की मैत्री को, अपनी कन्या का विक्रम के साथ विवाह करके, और भी दृढ़ करने की अभिलाषा प्रकट की। विक्रम ने इस बात को भी प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया और वह
- ↑ फ्लीट साहब के प्रकाशित किए हुए शिलालेखों में लिखा है कि कादम्ब-वंश का यह द्वितीय जयकेशी नामक राजा था। उसकी राजधानी गोपकपुर अर्थात् गोवा थी। जयकेशी और विक्रमादित्य की मित्रता का उल्लेख भी इन शिलालेखों में है।
- ↑ यह ठीक ठीक नहीं जाना गया कि आलुप नामक नगर कहाँ विद्यमान था। फ्लीट साहब का अनुमान है कि समुद्र के तट पर गोवा के पास ही वह कहीं रहा होगा।