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चाहिए। जो कुछ धन और सम्पत्ति लड़ाइयों में लूट लाया था वह भी उसने सोमेश्वर को दे दी[१]। कुछ काल के अनन्तर सोमेश्वर अनेक प्रकार के दुराचरणों में लिप्त हो गया। अभिमान
ने उसको अन्यायी बना दिया। लोभ ने उसे घेर लिया। सबके ऊपर उसे सन्देह होने लगा। प्रजा पर वह निर्दयता करने लगा। इन कारणों से अच्छे अच्छे अधिकारी पुरुषों ने उसे छोड़ दिया। अतएव चालुक्यवश की राजलक्ष्मी मलिन हो गई उसने अपने छोटे भाई विक्रम के साथ भी अन्याय करना प्रारम्भ किया। जब विक्रम ने कल्याण में रहना अनुचित समझा तब अपने छोटे भाई जयसिंह को साथ लेकर अपने अनुगामियों सहित वह चल दिया। जब सोमेश्वर ने सुना कि विक्रमादित्य कल्याण से भग गया तब उसने उस के पीछे अपनी सेना भेजी। विक्रम की यह इच्छा न थी कि अपने भाई से युद्ध करे, परन्तु विवश
- ↑ यहाँ पर, फिर भी बिल्हण ने विक्रमादित्य की उदारता और योग्यता का इसलिए उल्लेख किया जान पड़ता है जिसमें यह भासित हो कि पीछे से होने वाले वैमनस्य का कारण सोमेश्वर ही था ,विक्रम नहीं।