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अपना शरीर-पात करना निश्चित किया। अपने राजमन्त्रियों की सलाह से उन्होंने उस पवित्र नदी की ओर प्रस्थान किया; और वहाँ पहुँच कर उसकी तरङ्गमालाओं में 'शिव शिव' कहते हुए अपने प्राण विसर्जन किये।

पिता की मृत्यु का संवाद सुनकर विक्रमादित्य को अत्यन्त शोक हुआ। शोक और खेद से विह्वल होकर वह आत्महत्या तक करने के लिए उतारू हो गया। इस कारण उससे शस्त्र छीन लेने पड़े। कुछ समय के अनन्तर उसका शोक कम हुआ और कृष्णा के तट पर उसने अपने पित की अन्त्यक्रिया की।

पिता की अंत्येष्टि क्रिया को समाप्त करने पर, विक्रमादित्य ने, अपने बड़े भाई सोमेश्वर को धैर्य देने के लिए, कल्याण की ओर प्रस्थान किया। सोमेश्वर मिलने के लिए नगर से बाहर आया और बड़े प्रेम से विक्रम से मिला। कुछ काल तक दोनों भाई बिना किसी वैमनस्य के प्रीतिपूर्वक रहते रहे। यद्यपि सोमेश्वर से विक्रम सब बातों में श्रेष्ठ था, तथापि उसने अपने बड़े भाई का वैसा ही मान रक्खा जैसा कि राजा का रखना