इस प्रकार विजयी होकर विक्रम कल्याण की ओर लौटा और कृष्णा के तट तक आया। वहाँ उसे अपशकुन होने लगे। इसलिए वह वहीं ठहर गया और शान्ति के निमित्त पुण्यकर्म्म करने लगा। जिस समय वह वहाँ इस प्रकार शान्ति-क्रियाओं में लगा था उसी समय कल्याण से एक दूत उसके पास पहुँचा। उसे देखते ही विक्रम को ऐसा अनुमान हो गया कि वह कोई अमङ्गल-संवाद लाया है। विक्रम ने पहले ही अपने पिता आहवमल्ल के कुशल समाचार पूछे। इस प्रश्न को सुनकर उस दूत ने बड़ा शोक प्रकाशित किया और आँखों से आँसू बहाते हुए क्रम-क्रम से आहवमल्ल के मृत्यु की उसने सूचना दी। उसने कहा कि चोल, पांड्य और सिंहल इत्यादि देशों का आप के द्वारा जीता जाना सुनकर महाराज को महा आनन्द हुआ। आपके विजय के उपलक्ष्य में जब वे अनेक प्रकार के सुखोपभोग और आनन्द में निमग्न थे तभी उनको ज्वर ने आ घेरा। जब महाराज को विदित हो गया कि औषधोपचार से अब कोई लाभ न होगा तब उन्होंने दक्षिण की गङ्गा-स्वरूपिणी तुङ्गभद्रा में
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