विक्रमाङ्कदेवचरित के सिवा बिल्हण ने और भी ग्रंथ लिखे हैं, परन्तु उनका पता अभी तक नहीं लगा। शार्ङ्गधर-पद्धति में बिल्हण के नाम से अनेक पद्य उद्धृत हैं, जो इस काव्य में नहीं पाये जाते। इससे जान पड़ता है कि बिल्हण ने और कई ग्रंथों की रचना अवश्य की है। प्रोफेसर आफ़रेट का मत है कि बिल्हण ने अलङ्कार-शास्त्र का भी एक ग्रंथ लिखा है।
विक्रमाङ्कदेवचरित के मिलने के पहले बिल्हण का नाम एक और छोटी सी पुस्तक के द्वारा पण्डितों को विदित था। इस पुस्तक का नाम बिल्हण-पञ्चाशिका है। कहीं कहीं इसका नाम चौर-पञ्चाशिका भी लिखा है। इस पञ्चाशिका की किसी किसी हस्त-लिखित पुस्तक में एक आख्यायिका है जिसे हम यहाँ पर देना उचित समझते हैं। वह इस प्रकार है-
गुजरात के राजा वीरसिंह के चन्द्रलेखा अथवा शशिकला नाम की एक कन्या थी। बिल्हण उसे पढ़ाते थे। दैवयोग से शशिकला और बिल्हण में परस्पर प्रेम हो गया और बिल्हण ने उसके साथ गान्धर्व विवाह कर लिया। जब यह समाचार