पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/३२

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१०६२ ईसवी के कुछ काल पीछे, बिल्हण ने काश्मीर से प्रयाण किया। बीस पञ्चीस वर्ष का समय एक काश्मीरी पण्डित के लिए भारतवर्ष में घूमने और कल्याण में बहुत दिन तक रहने के लिए अधिक नहीं है। बिल्हण के कथन से सिद्ध है कि उसने विद्याध्ययन समाप्त करके काश्मीर से प्रस्थान किया। और विक्रमाङ्कदेवचरित के अन्त में लिखा है कि उसने संसार के सब सुख भोग लिये; अतएव अब विरक्त के समान गङ्गातट पर वास करने की उसकी इच्छा है। उक्तियों से जाना जाता है कि विक्रमाङ्कदेवचरित को समाप्त करने के समय बिल्हण वृद्धावस्था को अवश्य पहुँच गये थे। यदि अधिक नहीं तो बिल्हण की उम्र उस समय ५० वर्ष की अवश्य रही होगी। इसमें कोई सन्देह नहीं है।

जो कुछ यहाँ तक लिखा गया उससे, हमारी समझ में, यह प्रमाणित होता है कि, बिल्हण ने अपना देश १०६५ ईसवी के लगभग छोड़ा और विक्रमाङ्कदेवचरित की रचना प्रौढ़ वय को प्राप्त होने पर, १०८५ ईसवी के लगभग की।