पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/२०

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काश्मीर और काश्मीर के इतने राजाओं का वृत्तान्त लिख कर कवि अब अपने पूर्वजों का और अपना चरित वर्णन करता है।

प्रवरपुर से तीन मील के अन्तर पर जयवन नामक एक स्थान है। उसी के निकट खोनमुख नामक ग्राम है। उस ग्राम के चारों ओर केसर और अंगूर अधिकता से उत्पन्न होते हैं। वहाँ कुछ कौशिकगोत्रीय ब्रह्मज्ञ ब्राह्मण निवास करते हैं। काश्मीर को पवित्र करने ही के लिए मानो उन्हें महाराज गोपादित्य ने मध्यदेश से लाकर बसाया है। उन ब्राह्मणेां में अपने सद्गुणों से त्रिलोकी को पवित्र करनेवाला मुक्तिकलश नामक एक पवित्र ब्राह्मण हुआ। अग्निहोत्र करते समय उसके शरीर से पसीने की जो धारायें निकलीं उन्होंने कलियुग के कलुषरूपी धब्बों को धो सा डाला। चारों वेदों ने आकर उसके मुख-कमल में अपना घर बनाया। उसका पुत्र राजकलश हुआ। उसकी उदारता का अन्त न था। श्रुतियाँही उसका सर्वस्व थी। उसके पुत्र का नाम जेष्ठकलश हुआ। वह दया का समुद्र, साहित्यशास्त्र की जन्मभूमि, और शब्दशास्त्र का प्राचार्य हुआ। उसने व्याकरण के महाभाष्य की