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श्री हर्ष

श्री हर्ष के हस्ताक्षर निम्न प्रकार के हैं

'स्वहस्तो मम महाराजाधिराज श्रीहर्षस्य,'

आर्य्या वर्त के राजे लेखक रहे हैं एसे अनेक दृष्टान्त दृष्टिगोचर होते हैं; और साहित्य बन्द नहीं हुआ, यह आधुनिकहर्ष की शैली और कवियों में उसका स्थान इतिहास भी बतलाता है। हर्ष की शैली प्रायः सुगम तथा सरल है। कहीं कहीं कठिनता भी झलक पड़ती है। कालिदास इत्यादियों के समान उसकी शैली में मनोहरता नहीं किंतु फिर भी अन्य कवियों से किसी प्रकार उतरती नहीं है। यदि उसकी शैली के अत्युक्ति व्यक्त, द्वि अर्थ आदि दोष जो कहीं कहीं भा गये है निकाल दिये जाय तो उसका ढङ्ग लोक- प्रिय तथा अनुकरणीय है। संस्कृत विद्वानों में उसे द्वितीय श्रेणि के पण्डितों में स्थान दिया जा सकता है। अपने तीनों नाटकों में हर्ष अपने आपको नि-