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श्री हर्ष

मासो रामिलसेमिलौ वररुचिः श्री साहसाङ्कः कवि-
र्मेण्ठो भारविकालीदासतरलाः स्कंदः सुबन्धुश्च यः।
दंडी बाणदिवाकरौ गणपतिः कांतश्च रत्नाकरः
सिद्धा यस्य सरस्वती भगवती के तस्य सर्वेऽपि ते॥
कारणं तु कवित्वस्य न संपन्नकुलीनता।
धावकोऽपि हि यद्भास: कवीनामग्रिमोऽभवेत॥
आदौ भासेन रचिता नाटिका प्रियदर्शिका।
निरीर्ष्य॒स्य रसज्ञम्ब कस्य न प्रियदर्शना॥
तस्य रत्नावली नून रत्नमालेव राजते।
दशरूपककामिन्या वक्ष्यस्यत्यन्तशोभना॥
नागानन्दं समालोक्य यस्य श्री हर्षविक्रमः।
अमन्दानन्दभीरतः स्वसभ्यमकरोत्कवीम्॥

उपरोक्त श्लोकों पर से नारायण शास्त्री नामक एक लेखक का मत है कि इ० स० पूर्व ५५२ स ४५७ में कोई हर्ष विक्रमादित्य नाम का राजा हो गया है और मास उपनामधारी धावक उसका राजकवि हुआ है। यह ठीक है कि धावक का अर्थ धोबी होता है और यह भी सत्य है कि भास घोबी था परन्तु कालिदास ने अपने,