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श्री हर्ष

यह मुख्य नगरी थी। अशोकने अपराधियों के दण्ड देने निमित्त यहां एक बन्दीगृह बनवाया था । यहां ब्राह्मण राजा राज्य करता था, इतना ही वर्णन हमें ह्ययेनत्सङ्ग से प्राप्त हुआ है। कभी हर्ष ने ही उसे राजा बनाया हो, अथवा वह स्वयं ही गद्दी दबा बैठा हो, और हर्ष ने उसकी ओर ध्यान न दिया हो ऐसा हो सकता है। हर्ष के राज्य लाभ के आरम्भ में वहां गुप्त वंश का प्रभुत्व था । पाटलिपुत्र और अयोध्या के गुप्त वंशी राजाओं ने इ. स. ४०० में मालवा और उज्जयिनि को जीत लिया था । स्कन्दगुप्त की मृत्यु के पश्चात गुप्त वंश का अन्त हो गया परन्तु इ. स. ४८० से इ. स. ५०० तक बुद्धगुप्त नामक राजा जमना से नर्मदा तक राज्य करता था, एसा हम एरण के शिला लेखा तथा उनके सिक्कों पर से कह सकते हैं । गुप्त सरदारों ने भिन्न भिन्न स्थानों पर भिन्न भिन्न शाखाएं स्थापित की थीं। इस वंश के देवगुप्त को राज्यवर्धन ने मार डाला था, इस के बाद हर्ष ने भी इ. स. ६०६ में उज्जियिनि को आधीन किया था । इस के उपरान्त येनत्सङ्ग ने — चिचिरों ' तथवा झजोटि नगर तथा