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श्री हर्ष


बौद्धधर्मी क्षत्रिय राजा राज्य करता था। इसका नाम ह्युयेनत्सङ्ग ने नहीं दिया। सिन्धु नदी का दूसरी तरफ का प्रदेश लम्पक नगर तथा गान्धार भी उसके आधीन था। गान्धार का राजवंश नष्ट हो चुका था, जहां तहां जो खंडहर दीखते थे वह हर्ष के पिता प्रभाकरवर्धन के समय के हूण लोगों के होंगे ऐसा अनुमान होता है। इसके बाद सिन्धु के उस पार ही सुवस्तु (स्वात) का उद्यान आता है, इस समय वहां बौद्ध धर्म का प्रचार पूर्ण रूपसे था। सिन्धु नदी की इस ओर सबसे पहिले काश्मीर का राज्य आता है उसके आधीन तक्षशिला, सिंहपुर और उरश के राज्य थे। उस समय वहां दुर्लभवर्धन राजा राज्य करता था 'राज तरिङ्गिणी' के अनुसार इस राजा ने वहां कर्कोट वंश की स्थापना की थी। वह ई॰ स॰ ६०१ में गद्दी पर आया और उसने ३६ वर्ष तक राज्य किया अर्थात् वह आदि से अन्त तक हर्ष का समकालीन था। वह बलवान था, परन्तु हर्ष के आगे उसे झुकना पड़ा और कर देना भी उसने स्वीकार किया था।