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श्री हर्ष

चीन के राजा की आज्ञा से वह फिर इ. स. ६५७ में भारत को आया, परंतु इस बार वह केवल बौद्ध धर्म के पवित्र मंन्दिरों को दान करने के हेतु से आया था। वह नैपाल के वैशालि और बुद्धगया के स्थानों पर गया वहां से काबुल उत्तर अफगानिस्थान, हिन्दुकुश तथा पामीर होता हुआ अपने देश को वापिस लौटा।

हर्ष के अन्तिम दिनों में भारत की दशा कैसी थी तथा इसने किन किन राजाओं को अपने वश में किया था और कौन कौन सा राज्य उसकेहर्ष के काल के राजे राज्य इत्यादि आधीन था, उसका वर्णन ह्युयेनत्सङ्ग के लिये लिखे हुये वृतान्तों से स्पष्ट होजाता है। यह सब वर्णन इस लघु पुस्तक में क्रमानुसार नहीं आ सकता परंतु संक्षेप में हम यहां लिखते है, पर यह वृतान्त माना जा सकता है क्यों कि शिला लेखा तथा ताम्रपत्रों से इसका अनुमोदन हो सकता है।

भारत वर्ष के उत्तर से आरम्भ किया जाय तो प्रथम कपिश (काबुल) आता है। इस समय वहाँ