पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१६

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अत्युक्तियों को निकाल डालने पर भी विक्रमाङ्कदेवचरित में, फिर भी, बहुत कुछ ऐतिहासिक तत्त्व शेष रह जाता है। और जो कुछ रह जाता है वह काल्पनिक नहीं किन्तु यथार्थ है। उसकी सत्यता का प्रमाण चालुक्यों के उन शिलालेखों और ताम्रपत्तों में मिलता है जो कल्याण में पाये गये हैं। इन लेखों में चालुक्य-वंश के राजाओं की जो नामावली इत्यादि है वह विक्रमाङ्कदेवचरित की नामावली से मिलती है। इसके अतिरिक्त और और बातें भी जो उनमें पाई जाती हैं वे प्रायः सभी बिल्हण के काव्य में वर्णन की गई हैं। इसीलिए, प्राचीन इतिहास के रूप में, विक्रमाङ्कदेवचरित, दोषों के रहते भी बहुत ही उपयोगी है। उसकी उपयोगिता ही का विचार करके डाकर बूलर ने उसे बड़े परिश्रम से सम्पादित और अपनी लम्बी चौड़ी भूमिका के साथ प्रकाशित किया है। इस निबन्ध के लिखने में डाक्टर साहब की भूमिका से हमको बहुत सहायता मिली है। बहुत सी सामग्री हमने उसी से ली है।

विक्रमाङ्कदेवचरित में एक बात यह सब से अच्छी है कि कवि ने इसमें अपना, अपने कुटुम्ब