श्री दोनों युयेनत्सङ्ग का धार्मिक संवाद सुनते थे। “ह्युयेनत्सङ्ग कमी संवाद में हार न जाय इसकी चिन्ता हर्ष को बहुत रहती थी। एक बार इस प्रकार के संवादों के कारण ह्युयेनत्सङ्ग का जीवन सङ्कट में पड़ गया और हर्ष को यह डोण्डी पिटवानी पड़ी" कि इस न्यायेश्वर को यदि कोई छूयेगा तो उसके प्राणहरण किये जायेगें और जो कोई इस के विरुद्ध बोलेगा उसकी जीभ काटली जायगी, परन्तु जो मेरी कृपा का लाभ उठा कर इसका उपदेश सुनने आयेगा उसे डरने की कोई बात नहीं।" इस डण्डोरे का यह परिणाम हुआ कि १९ दिन में ही ह्युयेनत्सङ्ग का कोई प्रतिद्वन्दी न रहा। ह्युयेनत्सङ्ग के विवादों से हर्ष इतना प्रसन्न हुआ कि उसने अपनी नई राजधानी कनौज में विशेष सभा कर अपने गुरु (ह्युयेनत्सङ्ग) के उपदेश सुनवाने का निश्चय किया। अपने साथ बहुत से आदमियों को ले कर वह गङ्गाके दक्षिण तट पर होता हुआ गया। गङ्गा के दूसरे किनारे किनारे काम रूप (प्राग् ज्योतिष) का कुमार राजा बहुत से पुरुषों सहित कन्नौज के लिये चल दिया। १९ दिन में सब कन्नौज पहुंच गये। उस समय
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श्री हर्ष