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श्री हर्ष


कार तथा उपयोगी होने का यत्न किया करे ऐसा उन का मत हो गया। ऐसा कहा जाता है कि नागसेन ने नई शाखा स्थापित की थी। इसको महायान कहते हैं और बुद्ध की स्थापित शाखा हीनयान कहाती है। हर्ष को इन दोनों शाखाओं के लिये पूज्य भाव था, वह महाभक्त हो कर रहता था। मनुष्य जीवन से प्राणी जीवन बौद्ध धर्म में विशेष कीमती है इस सूत्र का पालन हर्ष बहुत सावधानी से करता था "धर्मरूपी बीज बोने का वह इतना प्रयत्न करता था कि खाना और सोना भी भूल जाता था यदि कोई जीवहिंसा अथवा मांसाहार करता तो उसे प्राण दण्ड दिया जाता था।

अशोक के पथ पर चलते हुए हर्ष ने समस्त राज्य में यात्रिओं, प्रवासियों गरीबों तथा रोगियों के निमित्त धर्मार्थ संस्थाए स्थापन की थी। शहरों तथा गांवों में धर्मशालाएं बनाई गई थीं, जिन में खाना विना मूल्य दिया जाता था। रोगियों को औषधि देने के लिये वैद्यों का भी प्रबन्ध था। उसने हिन्दु धर्म