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श्री हर्ष


कर शान्ति भोगने तथा दया धर्म के कार्य्य करने की इच्छा की।

हर्ष के समय बौद्ध धर्म का विशेष प्रचार था। इस धर्म की दो शाखाए हैं (१) महायान (२) हीनयान। दया धर्म के काम गौतम बुद्धने जब यह नया पन्थ[] स्थापन किया तो वह केवल संन्यास वृत्तिवाला था, आत्मा के अस्तित्व पर उसका विश्वास नहीं था। वह निर्वाण अथवा मोक्ष मानता था। मनुष्य को संसार छोड़ जङ्गल में रह कर कर्म संन्यास करना चाहिये यही वह प्रतिपादित करता था। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके अनुयायीओं को यह ध्येय अच्छा नहीं लगा इस लिये वह भक्ति मार्ग का भी अनुकरण करने लगे, और वैदिक धर्मानुसार उपासना पूजा इत्यादि का भी उपदेश करने लगे। मनुष्य कर्म संन्यास न कर लोगों पर उप-


  1. वास्तव में यह केवल पन्थ है, परन्तु साधारणतया इसे लोग धर्म कहने लग पड़े हैं इस पुस्तक में पन्थ के अर्थ में धर्म शब्द का प्रयोग किया है। - लेखक