इनाम और दुर्गुणीयों को दण्ड देता था। उस समय आज कल की तरह तम्बु नहीं थे परन्तु बाण के लेखानुसार पत्ते और शाखाओं से बने हुये "घूमते महल" प्रत्येक स्थल पर बनाये जाते थे। ऐसे महल राजा के दूसरी जगह जाने पर जला दिये जाते थे। हर्ष दरबारी ठाट में ही मुसाफरी करता था तथा उसके आगे आगे सोने के ढोल बजते थे।
हर्ष की राज्यव्यवस्था बहुत उत्तम सिद्धान्तों पर रची गईथी। राज्य का मुख्य कर सरकारी भूमि से उपजता था। प्रायः भूमिकर राज्य की समग्र आय का छठा भाग होता था। अफसरों को वेतन के स्थान में ज़मीन मिलती थी आजकल के समान उस समय बेगार की प्रथा नहीं थी। प्रजा पर कर का बोझ भी नहीं था। धर्म संस्थाओं को धन की सहायता देने का अच्छा प्रबन्ध किया गया था। उस समय आज-कल के समान अनाचार भी नहीं था, किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि चोरी तो जैसी आजकल है वैसी ही होगी कारण कि चीनी यात्री ह्युयेनत्सङ्ग कई