कहीं कहीं वर्णन करने के योग्य मुख्य मुख्य बातें भी छूट गई हैं और यदि नहीं भी छूटी तो अप्रासङ्गिक विषयों के वर्णन से ऐसी ढक सी गई हैं कि उनका पता लगाना कठिन सा हो गया है। एक जगह लिखा है कि विक्रमाङ्कदेव ने अपने प्रतिपक्षी चोल देश के राजा का पूरा पूरा पराभव करके उस देश को अपने अधीन कर लिया। आगे थोड़ी दूर जाकर उसी चोल देश पर विक्रमाङ्कदेव की दूसरी चढ़ाई का वर्णन है। पर कवि ने सन् संवत नहीं दिया कि कौन बात किस समय हुई। कहीं लिख दिया, 'कुछ दिन के अनन्तर', कहीं, 'बहुत दिन के अनन्तर'; कहीं कुछ, कहीं कुछ। विक्रमाङ्कदेव और उसके पिता आहवमल्ल की कवि ने ऐसी प्रशंसा की है जिसका ठिकाना नहीं। वे राम, कृष्ण, युधिष्ठिर, नल और दुष्यन्त के समान आदरणीय, दोषरहित, वीर और विजयी बतलाये गये हैं। आहवमल्ल के पिता जयसिंह के विषय में तो बिल्हण ने यहाँ तक लिखा है कि इन्द्र ने अपने हाथ से उसके कण्ठ में पारिजात की माला पहना दी-
पृष्ठ:विक्रमांकदेवचरितचर्चा.djvu/१४
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(८)