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श्री हर्ष


हर्ष अपने आप को राजा न कहला कर राजपुत्र शिला दित्य कहलाने लगा।

जब राज्यवर्धन देवगुप्त से लड़ने के निमित्त गया तब हर्षहर्ष की प्रवृत्ति को अनेक अपशकुन होने लगे, जिससे उसका मन चिन्तातुर हो गया। उसकी चिन्ता ठीक निकली तथा उसके भाई की सेना के कुन्तल नामी सरदार ने राज्यवर्धन के वध के समाचार हर्ष को सुनाये। यह सुन हर्ष विक्षिप्त हो गया। इस समय प्रभाकरवर्धन का मित्र, सेनापति सिंहनाद वहां था, उसने हर्ष को शान्त रहने का उपदेश दिया तथा राज्यव्यवस्था चलान की सम्मति दी, किन्तु हर्ष ने इस पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया। हर्ष एक साधारण पुरुष नहीं था, उसमें विशेष शक्ति एवं महान साहस था। वह भाग्यवान भी था। उसने संसार के समस्त राजाओं के पांव में बेड़ी पहिनाने की प्रतिज्ञा की, तथा अनुत्तीर्ण होने पर अपने आपको चिता के अर्पण करने का संकल्प किया। ऐसा विचार कर अपने युद्धमंत्री अवन्ति द्वारा दूर दूर देशों में ढंण्डोरा पिटवाया और स्वयं मालवा के देवदूत