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श्री हर्ष


की इच्छा रखता है। बाण ने इस राजाका नाम नहीं बतलाया, परन्तु कई साधनों द्वारा इसका नाम निश्चित हो सकता है। हर्ष के मधुवन के शिला लेख में निम्नलिखित श्लोक पाया जाता है।

राजानो युधि दुष्टवाजिन इव श्री देवगुप्तादयः
कृत्वा येन कशाप्रहारविमुखाः सर्वे समं संयताः

इस पर से यह स्पष्ट है कि राज्यवर्धनने देवगुप्त जैसे राजाओं को हराया था। हम यह भी जानते हैं कि राज्यवर्धन ने अपने राज्य काल में केवल दो ही युद्ध किये थे, एक-हूण लोगों के साथ और दूसरा मालवा के राजा के साथ। इस पर से यह सिद्ध हुआ, कि ग्रहवर्मा का वध करने वाला मालवा के राजा का नाम देवगुप्त ही था। डॉ० हंलों का कथन है कि कदाचित् यह देवगुप्त, माधवगुप्त और कुमारगुप्त का बड़ा भाई हो। अभी हम लिख चुके हैं कि "मालवराजपुत्रौ" माधवगुप्त और कुमारगुप्त तो हर्ष के मित्र थे। अफसद की शिला लेख के “ श्री हर्ष देव निज सङ्गमवांछयाच" से उक्त बात का समर्थन होता है। अब यह प्रश्न उपस्थित हो सकता हैं, कि जो भाई राजा