मालवा के गुप्त तथा कन्नौज के मौखीर बंशी राजाओं में पहिले से ही आपस में लड़ाईयां चलती थीं, ऐसा अफसद के शिला लेख से प्रकट होता है । इसकी पुष्टि बाण के तिमिरैस्तिरस्कारो खेः यो मौखराणां मालवैः परिभवः " इत्यादि वाक्य से भी होती है। आदित्यवर्मा की स्त्री हर्षगुप्ता उस के सम कालीन हर्षगुप्त की बहिन होगी। उपगुप्ता का परिचय
देना कठिन है। मौखरि वंश के राजे ईशानवर्मा के समय से ही ऐश्वर्यवान हुए होगें, क्योंकि इस राजा को महाराजाधिराज की उपमा दी गई है। ईशानवर्मा के पूर्व के तीन राजाओं को केवल महाराजा ही कहा गया है। मौखीर नाम केवल शर्ववर्मा के साथ लगाया गया है। मौखरि लोग उत्तर हिंदुस्तान के मुख्य क्षत्रिय थे ऐसा बाण के “ सस्त्वप्यन्येषु वरगुणेषु अभिजनमेवाभि-
रुध्यन्ते धीमन्तः। धरणीधराणांच भूभृन्मूनिस्थितो सकल भुवननमस्कृतो मौखरो वंशः॥” इत्यादि वाक्य से प्रकट होता है। शर्ववर्मा ने हूण लोगों को हराया
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श्री हर्ष