विरजन का श्रृंगार किया जा रहा था। नाइन उसके हाथों व पैरों में मेंहदी रचा रही थी। कोई उसके बाल गूँथ रही थी। कोई जूड़े में सुगंध वसा रही थी। पर जिसके लिए ये तैयारियाँ हो रही थीं, वह भूमि पर मोती के दाने बिखेर रही थी। इतने में बाहर से सन्देशा आया कि मूहूर्त टला जाता है; जल्दी करो। सुवामा पास खड़ी थी। विरजन उसके गले लिपट गयी और अश्रु-प्रवाह का आतंक, जो अब तक दबी हुई अग्नि की नाई सुलग रहा था, अकस्मात् ऐसा भड़क उठा मानों किसी ने आग में तेल डाल दिया है।
थोड़ी देर में पालकी द्वार पर आयी। बिरजन पड़ोस की स्त्रियों से गले मिली। सुवामा के चरण छुये, तब दो-तीन स्त्रियों ने उसे पालकी के भीतर बिठा दिया। उधर पालकी उठी, इधर सुवामा मूर्च्छित हो भूमि पर गिर पड़ी, मानो उसके जीते ही कोई उसका प्राण निकालकर लिये जाता था। घर सूना हो गया। सैकड़ों स्त्रियों का जमघट था, परन्तु एक विरजन के बिना घर फाड़े खाता था।
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[ १२ ]
कमलाचरण के मित्र
जैसे सिन्दूर की लालिमा से माँग रच जाती है, वैसे ही विरजन के आने से प्रेमवती के घर की रौनक बढ गयी। सुवामा ने उसे ऐसे गुण सिखाये थे कि जिसने उसे देखा, मोह गया। यहाँ तक कि सेवती की सहेली रानी को भी प्रेमवती के सम्मुख स्वीकार करना पड़ा कि तुम्हारी छोटी बहू ने हम सबों का रंग फीका कर दिया। सेवती उससे दिन-दिन-भर बातें करती और उसका जी न ऊबता। उसे अपने गाने पर अभिमान था, पर इस क्षेत्र में भी विरजन वानी ले गयी
अब कमलाचरण के मित्रों ने आग्रह करना शुरू किया कि भाई, नई