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वरदान
 


स्लेही हो,वह अपने बालक को कितना प्यार करेगा,सो अनुमान से बाहर है। नब से पुत्र पैदा हुश्रा,मुन्शीनी ससार के सब कार्यों से अलग हो गये। कहीं वे लड़के को हिंडोले में झुला रहे हैं और प्रसन्न हो रहे हैं। कहीं वे उसे एक सुन्दर सैरगाड़ी में बैठाकर स्वय खींच रहे हैं। एक क्षण के लिए भी वे उसे अपने पास से दूर नहीं करते थे। वे बच्चे के स्नेह में अपने को भूल गये थे।

सुवामा ने लड़के का नाम प्रतापचन्द्र रखा था। जैसा नाम था वैसे ही उसमें गुण भी थे। वह अत्यन्त प्रतिमाशाली और रूपवान् था। जब वह बातें करता,सुननेवाले मुग्ध हो जाते। भव्य ललाट दमक-दमक करता या। अङ्ग ऐसे पुष्ट कि द्विगुण डीलवाले लड़कों को भी वह कुछ न सममता था। इस अल्प आयु ही में उसको मुखमण्डल ऐसा दिव्य और ज्ञानमय था कि यदि वह अचानक किसी'अपरिचित मनुष्य के सामने श्राकर खड़ा हो नाता तो वह वित्मय से ताफने लगता था। -

इस प्रकार हँसते-खेलते छ वर्ष व्यतीत हो गये। अानन्द के दिन पवन की भांति सन्न से निकल जाते हैं और पता भी नहीं चलता। वे दुर्भाग्य के दिन और विपत्ति की रातें हैं, lजो काटे नहीं कटतीं। प्रताप को पैदा हुए अभी क्तिने दिन हुए। वधाई की मनोहारिणी ध्वनि कानों में [व रही थी कि छठी वर्षगांठ था पहुँची। छठे वर्ष का अन्त दुर्दिनों का श्रीगणेश था। मुन्शी शालिग्राम का सासारिक सम्बन्ध केवल दिखावटी या। वह निष्काम और निस्सम्बद्ध जीवन व्यतीत करते थे। यद्यपि प्रकट वह सामान्य ससारी मनुष्यों की भांति ससार के क्लेशों से क्लेशित और नुसों से हर्षित दृष्टिगोचर होते थे,तथापि उनका मन सर्वदा उस महान्और श्रानन्दपूर्ण शान्ति का सुख-भोग करता था,जिस पर दुख के झोंकों पौर मुख की थपकियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

मार का महीना था। प्रयाग में कुम्भ का मेला लगा हुआ था। रेलगारियों में यात्री ल्ई की भांति भर-भरकर प्रयाग पहुँचाये नाते थे। अस्सी