मेरी तो श्रापी पै नज़र,आपी पै नज़र हो।
तुम तो श्याम ।।
'लुगाइयाँ' पर सेवती हँसते-हँसते लोट गयी। चन्द्रा ने सजल नेत्र होकर कहा---'अब तो बहुत हॅस चुकी,लाऊँ कागज?'
सेवती-नहीं,नहीं;अभी तनिक हॅस लेने दो।
सेवती हॅस रही थी कि बाबू कमलाचरण का बाहर से शुमागमन हुआ। पन्द्रह-सोलह वप की आयु थी। गोरा गोरा गेहुओं रग। छरहरा शरीर,हँसमुख,भड़कीले वसों से शरीर को अलंकृत किये,इत्र में वसे,नेत्रों में सुरमा,अधर पर मुसकान और हाय में बुलबुल लिये आकर चारपाई पर बैठ गये। सेवती बोली-कमल! मुंह मीठा कराश्रो,तो तुम्हें ऐसे शुभ-समाचार सुनायें कि सुनते ही फड़क उठो।
कमला-मुंह तो तुम्हारा आज अवश्य ही मीठा होगा। चाहे शुभ-समाचार सुनाओ,चाहे न सुनायो। आज इस पट्ठ ने वह विजय प्राप्त की है कि लोग दंग रह गये ।
यह कहकर कमलाचरण ने बुलबुल को अँगूठे पर बिठा लिया।
सेवती-मेरी खबर सुनते ही नाचने लगोगे।
कमला--तो अच्छा है कि आप न सुनाइए। मैं तो आज योंही नाच रहा हूँ।इस पट्ठ ने आज नाक रख ली। सारा नगर टङ्ग रह गया। नवाब मुन्नेखों बहुत दिनों से मेरी आँखों पर चढ़े हुए थे। एक मास होता है,मैं उधर से निकला,तो आप कहने लगे-'मियां,कोई पट्ठा तैयार हो तो लायो,दो-दो चोचे हो बायें।' यह कहकर आपने अपना पुराना बुलबुल दिखाया। मैंने कहा 'कृपानिधान! अभी तो नहीं,परन्तु एक मास में यदि ईश्वर चाहेगा तो आपसे अवश्य एक जोढ़ होगी,और वद-बढ कर।'आज आशा शेरअली के अखाड़े में बदान की ठहरी। पचास-पचास रुपए की बाज़ी थी। लाखों मनुष्य नमा थे। उनका पुराना वुल-बुल,विश्वास मानों सेवती,कबूतर के बराबर था। परन्तु विस समय यह