हंसना-बोलना सब छूट गया था। उसका विनोद उनके सङ्ग चला गया था। इन्हीं कारणों ने राधाचरण को स्त्री का वशीभूत बना दिया था। प्रेम,रूप,गुण श्रादि सब त्रुटियों का पूरक है।
सेवती-निन्दा क्यों करेगा,'कोई तो तन-मन से तुझ पर रीझा हुया है।
चन्द्रा-इधर कई दिनों से चिट्ठी नहीं पायी।
सेवती-तीन-चार दिन हुए होंगे।
चन्द्रा-तुमसे तो हाथ-पैर नोड़ के हार गयी। तुम लिखती ही नहीं।
{]Gap}}सेवती-अब वे ही बातें प्रतिदिन कौन लिखे,कोई नयी बात हो तो लिखने को जी भी चाहे।
चन्द्रा-पाज विवाह के समाचार लिख देना। लाऊँ कलम-दावात?
सेवती-परन्तु एक शर्त पर लिखू गी।
चन्द्रा-बताओ।
सेवती-- तुम्हें श्यामवाला गीत गाना पड़ेगा।
चन्द्रा-अच्छा,गा दूंगी। हँसने ही को जी चाहता है न? हॅस लेना?
सेवती-पहिले गा दो तो लिखू।
चन्द्रा--न लिखोगी। फिर बातें बनाने लगोगी।
सेवती-तुम्हारी शपथ,लिख दूंगी,गात्रो।
चन्द्रा गाने लगी-
तुम तो श्याम पीयो दूध के कुल्हड़,मेरी तो पानी पै गुनर,पानी पै गुजर हो। तुम तो श्याम बड़े बेखबर हो।
अन्तिम शब्द कुछ ऐसे वेसुर-से निकले कि हँसी का रोकना कठिन हो गया। सेवती ने बहुत रोका,पर न रुक सकी। हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गये। चन्द्रा ने दूसरा पट गाया-
आप तो श्याम रक्खो दो-दो लुगाइयाँ,