विवाह फतहपुर-सीकरी के एक रईस के यहाँ हुआ था। मॅझली लड़की का नाम सेवती था। उसका भी विवाह प्रयाग के एक धनी घराने में हुआ था। छोटा लड़का कमलाचरण अभी तक अविवाहित था। प्रेमवती ने बचपन ही से लाड़-प्यार करके उसे ऐसा बिगाड़ दिया था कि उसका मन पढ़ने-लिखने में तनिक भी न लगता था। पन्द्रह वर्ष का हो चुका था,पर अभी तक सीधा-सा पत्र भी न लिख सकता था। मियाँ जी वैठे। उन्हें इसने एक मास के भीतर निकालकर सांस ली। तब पाठशाला में नाम लिखाया गया। वहाँ जाते ही उसे वर चढ़ पाता और सिर दुखने लगता था। इसलिए वहाँ से भी वह उठा लिया गया। तब एक मास्टर साहन नियत हुए और तीन महीने रहे,परन्तु इतने दिनों में कमलाचरण ने कठि-नता से तीन पाठ पढ़े होंगे। निदान मास्टर साहब भी विदा हो गये। तब डिप्टी साहब ने स्वयं पढ़ाना निश्चित किया। परन्तु एक ही सप्ताह में उन्हें कई वार कमला का सिर हिलाने की श्रावश्यकता प्रतीत हुई। साक्षियों के वयान और वकीलों की सूक्ष्म श्रालोचनायों के तत्त्व को समझना इतना कठिन नहीं है,जितना किसी निरुत्साही लड़के के मन में शिक्षा-रुचि उत्पन्न करना।
प्रेमवती ने इस मारधाड़ पर ऐसा उत्पात मचाया कि अन्त में डिप्टी साहव ने भी झलाकर पढ़ाना छोड़ दिया। कमला कुछ ऐसा रूपवान्,सुकुमार और मधुरभाषी था कि माता उसे सव लड़कों से अधिक चाहती थी। इस अनुचित लाड़-प्यार ने उसे पतंग,कबूतरवानी और इसी प्रकार के अन्य कुव्यसनों का प्रमी वना दिया था। सवेरा हुया और कबूतर उड़ाये जाने लगे। बटेरों के जोड़ छूटने लगे;सन्ध्या हुई और पतंग के लम्बे-लम्बे पेंच होने लगे। कुछ दिनों से जुए का भी चस्का पड़ चला था। दर्पण,कंघी और इत्र-तेल में तो मानो उसके प्राण ही वसते थे।
प्रेमवती एक दिन सुवामा से मिलने गयो हुई थी। वहां उसने वृद्ध-सनी को देखा और उसी दिन से उसका जी ललचाया हुया था कि यदि