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वरदान
 

से सम्बन्ध होता है। यदि प्रताप को वृजरानी से हार्दिक सम्बन्ध था तो वृजरानी भी प्रताप के प्रेम में पगी हुई थी। जब कमलाचरण से उसके विवाह की बात पक्की हुई तो वह प्रतापचन्द्र से कम दुस्खी न हुई। हाँ, लज्जावश उसके हृदय के भाव कभी प्रकट न होते थे! विवाह हो जने के पश्चात् उसे नित्य यह चिन्ता रहती थी कि प्रतापचन्द्र के पीड़ित हृदय को कैसे तसल्ली दूँ? मेरा जीवन तो इस भॉति आनन्द से बीतता है। बेचारे प्रताप के ऊपर न जाने कैसी बीतती होगी! माधवी उन दिनों ग्यारहवे वर्ष में थी। उसके रग रूप की सुन्दरता, स्वभाव और गुण देख-देखकर आश्चर्य होता था। विरजन को अचानक यह ध्यान आया कि क्या मेरी माधवी इस योग्य नहीं कि प्रताप उसे अपने कण्ठ का हार बनाये? उस दिन से वह माधवी के सुधार और प्यार में और भी अधिक प्रवृत हो गयी। वह सोच सोचकर मन ही-मन फूली न समाती कि जब माधवी सोलह-सत्रह वर्ष की हो जायगी, तब मैं प्रताप के पास जाऊँगी और उससे हाथ जोड़कर कहूॅगी कि माधवी मेरी बहिन है। उसे आज से तुम अपनी चेरी समझो। क्या प्रताप मेरी बात टाल देंगे? नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते। आनन्द तो तब है जब कि चची स्वय माधवी को अपनी बहू बनाने की मुझसे इच्छा करें। इसी विचार से विरजन ने प्रतापचन्द्र के प्रशसनीय गुणों का चित्र माधवी के हृदय में खींचना आरम्भ कर दिया था, जिससे कि उसका रोम-रोम प्रताप के प्रेम में पग जाय। वह जब प्रतापचन्द्र का वर्णन करने लगती तो स्वतः उसके शब्द असामान्य रीति से मधुर और सरस हो जाते। शनैः शनैः माधवी का कोमल हृदय प्रेम-रस का आस्वादन करने लगा। ‘दर्पण में बाल पड़ गया।'

भोली माधवी सोचने लगी, मैं कैसी भाग्यवती हूॅ। मुझे ऐसे स्वामी मिलेंगे जिनके चरण धोने के योग्य भी मैं नहीं हूॅ ,परन्तु क्या वे मुझे अपनी चेरी बनायेंगे? कुछ हो मैं अवश्य उनकी दासी बनूँगी और यदि प्रेम मे कुछ आकर्षण है, तो मैं उन्हें अवशय अपना बना लूँगी। परन्तु