कोई पचास वर्ष की आयु होगी। नगे पाँव, सिर पर एक पगड़ी बाॅधे, कन्धे पर अँगोछा रखे, हाथ में मोटा-सा सोटा लिये द्वार पर आकर बैठ गये। घर के बढ़े जमींदार है, पर किसी ने उनके शरीर पर मिर्जई तक नहीं देखी। उन्हे इतना अवकाश हो नहीं कि अपने शरीर-पालन की ओर ध्यान दें। इस मंडल मे आठ दस कोस तक लोग उनपर विश्वास करते है। न वे हकीम को जाने, न डाक्टर को। उनके हकीम-डाक्टर जो कुछ हैं, वे दिहलराय हैं! सन्देशा सुनते ही आकर द्वार पर बैठ गये। डाक्टरों की भॉति नहीं कि प्रथम सवारी मॉगगे―वह भी तेज जिसमें उनका समय नष्ट न हो। आपके घर आकर ऐसे बैठे रहेंगे, मानो गेंगे का गुड़ खा गये है। रोगी को देखने जायेंगे तो इस प्रकार भागेंगे, मानो कमरे की वायु मे विष भरा हुआ है। रोग-परिचय और औषध का उपचार केवल दो मिनट में समाप्त। दिहलूराय डाक्टर नहीं है―पर जितने मनुष्यों को उनसे लाभ पहुॅचता है, उनकी संख्या का अनुमान करना कठिन है। वह सहानुभूति की मूर्ति है। उन्हें देखते ही रोगी का आधा रोग दूर हो जाता। उनकी औषधियाॅ ऐसी सुगम और साधारण होती है कि बिना पैसा-कौड़ी मनो बटोर लाइए। तीन ही दिन में माधवी चलने-फिरने लगी। वस्तुतः उस वेद्य की औषधि मे चमत्कार है।
यहाॅ इन दिनो मुगलिये ऊधम मचा रहे हैं। ये लोग जाड़े में कपड़े उधार दे देते है और चैत में दान वसूल करते है। उस समय कोई बहाना नही सुनते। गाली गलौज, मार-पीट सभी बातों पर उतर आते है। दो-तीन मनुष्यों को बहुत मारा। राधा ने भी कुछ कपड़े लिये थे। उसके द्वार पर जाकर सब-के-सब गालियाॅ देने लगे। तुलसा ने भीतर से किवाड़ बन्द कर दिये। जब इस प्रकार बस न चला, तो एक मोहनी गाय को खूॅटे से खोलकर खींचते हुए ले चला। इतने में राधा दूर से आता दिखायी दिया। आते ही-आते उसने लाठी का वह हाथ मारा कि एक मुगलिये की कलाई लटक पड़ी। तब तो मुगलिये कुपित हुए, पैंतरे घद-