इन्द्र भी वृत्र के साथ जनविहार, मृगया और जल - क्रीड़ा करने लगा। परन्तु वह वृत्र को मारने की घात में था । अवसर पाकर उसने एक दिन समुद्र- तीर पर उसे असावधान देख वज्र - प्रहार से मार डाला । फिर संकेत पाते ही सब देव - गण शस्त्र ले - लेकर दासों पर पिल पड़े । दास असावधान और नेत्रविहीन हो गए थे। फिर भी उन्होंने डटकर युद्ध किया । परन्तु उनके पास अश्व न थे। देवों को अश्व दौड़ाते देख वे भयभीत हो गए। उन्होंने अश्व और योद्धा को कोई विचित्र जीव समझकर पलायन करना आरम्भ किया । नमुचि दास ने स्त्रियों तक को खड्ग लेकर युद्ध में भेजा । परन्तु नमुचि का युद्धस्थली में निधन हुआ और अन्त में देवों ने दासों के दोनों अयोध्य नगरों को जलाकर खाक कर डाला तथा वृत्र का दास साम्राज्य छिन्न -भिन्न कर दिया । ___ आज उन्हीं दो अयोध्य नगरों के ध्वंसावशेष मोइनजोदड़ो और हड़प्पा के नाम से विख्यात हैं , जिनकी खुदाई आज हो रही है और इस प्रतापी आक्रान्ता इन्द्र के घोड़ों से खुदी हुई दासों की वह भूमि नये- नये रहस्यों को प्रकट कर रही है। आगे इलावर्त में परिवर्तन होने के कारण इन्द्र, उनके अनुयायी देव और सहायक मरुतों का नामोनिशान भी पर्शिया और बलूचिस्तान में नहीं रहा, परन्तु भारत में मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के रहस्यमय ध्वंस पुकार - पुकारकर उस अतिपुरातन घटना की साक्षी दे रहे हैं । अपने भाई वृत्र के मरने पर त्वाष्ट्रा विश्वरूप बहुत क्रुद्ध हुआ । इस पर इन्द्र को इस बात का भय उत्पन्न हो गया कि कहीं विश्वरूप विद्रोह न खड़ा कर दे । विश्वरूप त्वाष्ट्रा साधारण पुरुष न था । वह असुर -याजक कुल का था - देव - दैत्य सभी का वह पूज्य था । इसलिए इन्द्र ने अपने अनुगत तक्ष को बुलाकर कहा, " तू सोते हुए विश्वरूप का सिर काट डाल! " “किन्तु इसके कंधे बड़े मोटे हैं , ये मेरी कुल्हाड़ी से न कटेंगे। " " डर मत , तेरी कुल्हाड़ी पैनी और दृढ़ है। " " परन्तु मेरी कुल्हाड़ी बेकार हो जाएगी। " " नहीं होगी । " " आप भयंकर काम कराना चाहते हैं, आपको इस क्रूर कर्म के करने में लाज नहीं आती ? " " लाज कैसी रे, मनस्वी कार्यार्थी कर्मसिद्धि को प्रथम देखते हैं । " “ किन्तु यह ऋषिपुत्र है, याजक है, इसे मारने में आपको ब्रह्महत्या का भय नहीं है ? " " " “ मैं कठिन कर्म करके पीछे उससे छुटकारा पा लूंगा। तू अपना काम कर । " “ यह तो घोर कृत्य है। " “मैं तुझे यज्ञ - बलि के पशु का सिर यज्ञ - भाग में दूंगा । वह सदैव तेरे वंश को मिलता रहेगा, तू इसका सिर काट। " इस पर तक्ष ने कुल्हाड़े से त्रिशिरा विश्वरूप का सिर काट लिया । इस पर बड़ा हल्ला मचा और जगह - जगह लोग इन्द्र को ब्रह्महा -ब्रह्महा कहने और विद्रोह करने लगे । इससे भयभीत होकर इन्द्र भागकर छिप गया ।
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