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उत्पन्न हुए । बहुत वृद्ध होने पर एक दिन महाराज पुरुरवा मृगया -विनोद करने परिवार सहित नैमिषारण्य वन गए। वहां कुछ ऋषि यज्ञ कर रहे थे । उनके यज्ञ - वाट हिरण्यमय थे। हिरण्यमय यज्ञ -बाट देख राजा को लोभ हो आया । उसने कहा - “ अरे ऋषियो , हिरण्यमय यज्ञ- वाट रखने से तुम्हारा क्या प्रयोजन है? यह स्वर्ण राजा का है। तुम मृत् वाट से यज्ञ करो। " __ ऋषियों ने विरोध किया । इस पर ऋषियों से राजा का विग्रह हो गया । विग्रह में ऋषियों के हाथ से राजा मारा गया । पुरुरवा के आठ पुत्रों में ज्येष्ठ आयु का पुत्र नहुष था । नहुष बड़ा ही प्रतापवान् राजा हुआ । उसका विवाह पितृकन्या विरजा से हुआ था । उसने पृथ्वी के राजाओं को जीतकर चक्रवर्ती पद पाया । सम्भवत : वही प्रथम आर्य चक्रवर्ती नरेश था ।