" अहा , तो चल , वह पुष्पशय्या है, सुखासन है, सुरभित मद्य है, वासन्ती पवन है , प्राणों में प्राणों के लय होने का क्षण है! ” उसने उस अनिन्द्य दानवनन्दिनी कृशोदरी मन्दोदरी को हृदय से लगाकर कहा : “ समापो हृदयानि नौ ! ”